ज़ख़्म खा के मुस्कुराना आ गया वस्फ़ ये भी शाइ'राना आ गया ताक़चे में इक दुआ रक्खी गई इक दिये को सर छुपाना आ गया फूल ताज़ा ही सही गुल-दान में दर्द कमरे में पुराना आ गया देख लो चुप-चाप उठ के चल दिए देख लो रिश्ता निभाना आ गया देखिए ये 'नज्म' कूचा है वही देखिए साहिब ठिकाना आ गया