ज़ख़्म तिरे अतवार के अक्सर एक ही जैसे होते हैं तीर ज़बाँ तलवार के नश्तर एक ही जैसे होते हैं चेहरे बदले आदत बदली रूह ने फूंकी जान नई वर्ना सब मिट्टी के पैकर एक ही जैसे होते हैं कौन पड़ा होगा रस्तों पर किस को पूजा जाएगा यूँ देखो तो सारे पत्थर एक ही जैसे होते हैं नफ़रत ने है ख़ून बिछाया दुनिया की जिन गलियों में उन सारी गलियों के मंज़र एक ही जैसे होते हैं काँटों के हों मख़मल के या फ़ुटपाथों की गोद में हों नींद अगर हो सारे बिस्तर एक ही जैसे होते हैं आईने जब ढूँड रहे हों झूट नगर में सच्चाई सारे चेहरे सब चेहरों पर एक ही जैसे होते हैं दौलत ग़ुर्बत शाह गदागर सब दुनिया के मेले हैं तुर्बत में फ़ुक़रा-ओ-सिकंदर एक ही जैसे होते हैं घर हो या सहरा का दामन मुझ को है सब एक 'नसीम' वीराने तो अंदर बाहर एक ही जैसे होते हैं