ज़मीं पे होंगे मगर फ़लक पे अलम रहेगा हमारे आँगन में पंजतन का करम रहेगा ख़ुदा की बातें करेंगे वाइज़ पर उन के दिल में क़सम ख़ुदा की सुकूँ की ख़ातिर सनम रहेगा निकल सकेंगे जहाँ की नज़रों से बच-बचा के तुम्हारा ग़म अपने ग़म में जिस दर्जा ज़म रहेगा यज़ीदियत की तो आल पाएगी लम्बी उम्रें हुसैनी जो भी है शहर-ए-कूफ़ा में कम रहेगा कोई भी खाना हो अच्छे बर्तन में पेश करना सफ़ेद-पोशी का इस अदा से भरम रहेगा हम अम्न की बात भी करेंगे मगर हमारा निशान वोटों में तीर तलवार बम रहेगा तुम्हारे होने से एक हद तक ख़ुशी थी हम को तुम्हारे जाने से एक हद तक ही ग़म रहेगा जहाँ के हालात देख कर लग रहा है 'मूसा' रहेंगे जब तक ज़मीन-ज़ादे सितम रहेगा