ज़मीं से आसमाँ तक या मकाँ से ला-मकाँ तक है जमाल-ए-यार का परतव ख़ुदा जाने कहाँ तक है चमन में बिजलियो कुछ और भी तो आशियाने हैं मगर सारा तबस्सुम सिर्फ़ मेरे आशियाँ तक है मिरे शोर-ए-जुनूँ से हुस्न की है गर्म-बाज़ारी तजल्ली शम्अ' की परवाना-ए-आतिश-ब-जाँ तक है निशात-ए-जावेदाँ होता है हासिल बे-नियाज़ी से वजूद-ए-रंज-ओ-ग़म अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक है निगाह-ए-शौक़ की गुस्ताख़ियाँ कर देंगी शोख़ उन को हमें भी देखना है शर्म की वुसअ'त कहाँ तक है मिरे ईमान-ओ-दिल की क्या है क़ीमत जब कि ऐ ज़ाहिद तसद्दुक़ उन के जलवों पर मता-ए-दो-जहाँ तक है जो हैं बे-ख़ानुमाँ उन को सुरूर-ए-ज़िंदगी क्या हो मज़ा गुलशन में रहने का वजूद-ए-आशियाँ तक है सफ़ीने ग़र्क़ लाखों हो गए बहर-ए-मोहब्बत में ख़ुदा मालूम इस दरिया की गहराई कहाँ तक है तअम्मुल क्या है कर ले बैअ'त-ए-दस्त-ए-सुबू ज़ाहिद ख़बर भी है कि इस का सिलसिला पीर-ए-मुग़ाँ तक है मिरे मिटते ही मिट जाएगी शान-ए-बरहमी तेरी तिरे ख़ंजर की शोख़ी मेरे ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ तक है जुनून-ए-शौक़ से इदराक होगा उन के जल्वे का ख़िरद की कार-फ़रमाई फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ तक है 'वली' दो एक साअ'त में लिखी आख़िर ग़ज़ल तू ने तिरे फ़िक्र-ए-फ़लक-पैमा की जौलानी यहाँ तक है