ज़रूरी कामों की फ़िहरिस्त जब बनाता हूँ सिवा तुम्हारे मैं हर बात भूल जाता हूँ मैं अपने सब्र को इस तरह आज़माता हूँ झुलसते सहरा में शादाबियाँ उगाता हूँ मेरे दिमाग़ पे हावी है मेरा पागल-पन पुरानी आँखों पे चेहरा नया लगाता हूँ जिसे ज़माना समझता है मैं ने लिक्खे हैं वो तेरे गीत हैं जिन को मैं गुनगुनाता हूँ तमाम ख़्वाब सजा कर ख़ुद अपनी आँखों में मैं अपनी नींद से अक्सर फ़रेब खाता हूँ न जाने कितनी ही बातें जो तुम से करनी थीं तुम्हारे सामने आते ही भूल जाता हूँ कहीं तबाह न कर दें ये मुस्तक़िल ख़ुशियाँ उदासियो मैं तुम्हें इस लिए बुलाता हूँ