साथ दे सकता नहीं ज़ाहिद का ईमाँ दूर तक जा रही है मेरी फ़िक्र-ए-ना-मुसलमाँ दूर तक तेरे दीवानों ने शाने की क़सम खाई है आज बात अब जाएगी ऐ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ दूर तक ऐ जुनून-ए-आस्माँ-पर्वाज़ तेरा शुक्रिया जा रहा है आज उड़ उड़ कर गरेबाँ दूर तक ये नहीं मुमकिन कि साहिल का तसव्वुर डूब जाए कुछ सफ़ीनों को डुबोते जाएँ तूफ़ाँ दूर तक जिस को आना है वो आए जिस को रहना है रहे रहगुज़र ही रहगुज़र है दूर तक हाँ दूर तक ऐ शब-ए-ग़म क्या करूँ ख़्वाब-ए-सहर का क्या करूँ है फ़लक पर तो चराग़ाँ ही चराग़ाँ दूर तक मोच आख़िर आ गई वीरानियों के पाँव में साथ तो गुलशन के दौड़े थे बयाबाँ दूर तक