ज़ेहन में ख़्वाबों के कुछ पैकर सजा कर रख दिए हम ने अपने घर की दीवारों पे छप्पर रख दिए शीश-महलों के मुहाफ़िज़ ने गुज़िश्ता रात को शहर की गलियों में आवाज़ों के पत्थर रख दिए हाथ छू लूँ तो महक जाए वो फूलों की तरह किस ने उस के दिल में ख़ुशबू के सनोबर रख दिए मेरे शे'रों से बहुत बरहम हैं फ़नकारान-ए-शहर मैं ने ज़र्रे आसमानों के बराबर रख दिए मैं दबा जाता हूँ अपने शहर के किरदार में अपने अपने बोझ सब ने मेरे ऊपर रख दिए