ज़ेहन-ओ-दिल को जुदा जुदा रखना मुझ से इतना तो सिलसिला रखना क़ुर्बतों की अगर हो ख़्वाहिश फिर तुम को लाज़िम है फ़ासला रखना गर ये चाहो भरम रहे क़ाएम अपने पैवंद को छुपा रखना लाख ग़म का धुआँ रहे दिल में अपना चेहरा खिला खिला रखना तोड़ डाले हैं जिस ने सब रिश्ते अब तअल्लुक़ भी उस से क्या रखना सब ख़ुशी दोस्तों में मत बाँटो दुश्मनों के लिए बचा रखना इक न इक दिन वो आएगा 'राही' अपना दरवाज़ा तुम खुला रखना