तुम मिरे सामने आओ तो कोई बात बने ज़ख़्म इस दिल पे लगाओ तो कोई बात बने आग घर की तो ज़माने में बुझाते हैं सभी आतिश-ए-दिल जो बुझाओ तो कोई बात बने राह-ए-हस्ती में कड़ी धूप है मेरे सर पर तुम घटा बन के जो छाओ तो कोई बात बने चढ़ते सूरज को तो हर शख़्स ही करता है सलाम गिरते लोगों को उठाओ तो कोई बात बने हर मुसाफ़िर को जहाँ फल भी मिले साया भी पेड़ कुछ ऐसे लगाओ तो कोई बात बने घर के आँगन की तो दीवार गिरा दी 'राही' दिल का मीनार गिराओ तो कोई बात बने