रहे दरिया-ए-सुख़न यूँही रवाँ मेरे बा'द बाँझ हो जाए न ग़ालिब की ज़बाँ मेरे बा'द कौन देगा उन्हें ख़ुश्बू का जहाँ मेरे बा'द किस से लिपटेंगे ये नाज़ुक-बदनाँ मेरे बा'द कू-ब-कू फिरती है अब चारों-तरफ़ आवारा बू-ए-गुल को न मिली जा-ए-अमाँ मेरे बा'द लाख मैं नंग-ए-सुख़न हूँ प यक़ीं है मुझ को लोग ढूँडेंगे मिरा तर्ज़-ए-बयाँ मेरे बा'द छोड़ कर जाऊँगा मैं घर में उजाले का सुबूत काम आएगा ये ताक़ों का धुआँ मेरे बा'द यार सब चल दिए बाज़ार-ए-हवस की जानिब हो गई राह-ए-जुनूँ कम-गुज़राँ मेरे बा'द मैं कि ख़ातम भी हूँ ख़ुद अपनी तबीअ'त का 'ज़िया' क़त हुआ सिलसिला-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ मेरे बा'द