ज़िक्र किस का है सर-ए-दार तुम्हें क्या मालूम क्यों पशेमाँ हैं गुनहगार तुम्हें क्या मालूम दोस्तो इश्क़ का आज़ार तुम्हें क्या मालूम ख़ुद मसीहा भी है बीमार तुम्हें क्या मालूम तुम अभी फ़िक्र की राहों से कहाँ गुज़रे हो लोग ग़ाफ़िल हैं कि हुशियार तुम्हें क्या मालूम अहल-ए-ग़ैरत के लिए आग भी हो सकता है असर-ए-साया-ए-दीवार तुम्हें क्या मालूम बंदा-ए-इश्क़ जिसे कहती है दुनिया 'अंजुम' वो ख़ुद अपना है परस्तार तुम्हें क्या मालूम