ज़िंदगी भर का रोना गाना है क़ैद-ख़ाना तो क़ैद-ख़ाना है चूक के नाम पर भी चूक नहीं कितना ज़ालिम तिरा निशाना है वो ज़माना भी क्या ज़माना था ये ज़माना भी क्या ज़माना है जैसे चाहें सजा के पेश करें आप हैं और ग़रीब-ख़ाना है क्या अजब शर्त है मोहब्बत की वक़्त-ए-रुख़्सत भी मुस्कुराना है मैं हूँ बीमार तुम चले आओ अब यही आख़िरी बहाना है और कुछ दिन ख़राब कर लो यहीं फिर तुम्हें लौट कर भी आना है याद करना है एक पल तुम को और फिर देर तक भुलाना है हाँ तअल्लुक़ हमीं ने तोड़ दिया अब सभी को यही बताना है