ज़िंदगी भर यही अज़ाब रहा मुझ पे मुबहम तिरा जवाब रहा जैसे तू बे-हिसाब था मेरा दुख भी वैसे ही बे-हिसाब रहा ज़िंदगी तो हसीन थी लेकिन बस मिरा तजरबा ख़राब रहा और ठहरो अभी चले जाना चंद लम्हों का बस हिसाब रहा नाज़ नाकामियों पे करता वो मैं मोहब्बत में कामयाब रहा क़ैद-ए-जाँ से मैं हो गया आज़ाद ये रहा तू ये तेरा ख़्वाब रहा