ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं दर्द फ़ितरत की इनायत के सिवा कुछ भी नहीं मुझ गुनहगार को है नाज़ जो रहमत पे तिरी तर्ज़-ए-इज़हार-ए-नदामत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी नज़रों का तक़ाज़ा ही सही हुस्न तिरा हुस्न इक शोख़ी-ए-फ़ितरत के सिवा कुछ भी नहीं कुछ न कहना भी मोहब्बत में मोहब्बत की क़सम एक इज़हार-ए-हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं अजनबी बन के निगाहों में समाने वाले अज्नबिय्यत ये इनायत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी दुनिया-ए-ख़यालात में आने वाले ये मिरे ख़्वाब-ए-मसर्रत के सिवा कुछ भी नहीं मेरा हर क़ौल-ओ-अमल उस का है शाहिद 'सादिक़' मेरा आईन सदाक़त के सिवा कुछ भी नहीं