ज़िंदगी दर्द के सिवा क्या है जी मिरे यार सोचता क्या है होश की इंतिहा तो है वहशत और वहशत की इंतिहा क्या है रख मिरी प्यास पर नज़र साक़ी तू मिरा ज़र्फ़ देखता क्या है मैं सितम को ख़ुलूस कहता हूँ ये ग़लत है तो फिर बजा क्या है अपनी कोई ख़ता नहीं 'इशरत' और इस से बड़ी ख़ता क्या है