दश्त-ए-हयात सूरत-ए-सहरा दिखाई दे मीलों कोई शजर ही न साया दिखाई दे क्यों शीशा-ए-ख़याल न धुँदला दिखाई दे जब अक्स टूटता हुआ तारा दिखाई दे महरूमियों की धुंद है नज़रों के सामने कैसे निगार-ए-वक़्त का चेहरा दिखाई दे हद्द-ए-नज़र है सिर्फ़ सराबों का सिलसिला हर लब पे एक प्यास का सहरा दिखाई दे ऊपर से यूँ तो ख़ुद को समेटे हुए हैं लोग अन्दर से हर वजूद बिखरता दिखाई दे हर पेड़ पर इताब है किन मौसमों का आज शाख़ों पे कोई फूल न पत्ता दिखाई दे 'जौहर' तलाश-ए-ज़ात से इरफ़ान-ए-ज़ात तक अपनी अना का अक्स हर इक जा दिखाई दे