ज़िंदगी फ़र्त-ए-हादसात से है मौत आसाइश-ए-हयात से है शाम-ए-ज़ुल्मत है मुफ़्त में बदनाम आबरू-ए-सहर तो रात से है बे-रुख़ी में है कैफ़-ए-सरशारी तिश्नगी लुत्फ़-ए-इल्तिफ़ात से है ज़ौक़-ए-आराइश-ए-जमाल से दूर सादगी हुस्न की सिफ़ात से है मैं न होता तो बात ही क्या थी बात लेकिन जो काएनात से है क़ुर्ब-ए-जानाँ से ख़ौफ़ खाता हूँ प्यार तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ात से है रेत के ढेर पर लिखा है नाम ये अमल जैसे बाक़ियात से है हादसे आग बिजलियाँ आँधी जो भी आफ़त है मेरी ज़ात से है कितने दरिया थे मौजज़न उस में तिश्ना-लब जो लब-ए-फ़ुरात से है नज़्म-ओ-क़त'आत भी 'कलीम' हैं ख़ूब कैफ़ ग़ज़लों की वारदात से है