ज़िंदगी गुज़री है अक्सर ऐसे उनवानों के बीच जैसे सच्चाई बयाँ की जाए अफ़्सानों के बीच चाक-ए-दामन सी रहे हैं आज दीवानों के बीच शा'इरी जैसे किया करते हैं नादानों के बीच हुस्न को पहचानते ही ख़्वाब तक जाते रहे ये भी इक नुक़साँ हुआ है सारे नुक़्सानों के बीच शाम ढलते दर्द तेरा इस तरह रौशन हुआ जैसे आँसू झिलमिला जाते हैं मुस्कानों के बीच डेवढ़ी को नज़्म करने के लिए सोचा बहुत कितनी यादें ले के बैठा हूँ मैं दालानों को बीच क़द्र कर लो ऐ नई नस्लों के फ़नकारो कि हम ढूँडने पर भी न मिल पाएँगे इमकानों के बीच मुतमइन तो कोई भी 'शाहिद' नहीं है दहर में आरज़ू जीने की फिर भी है परेशानों के बीच