ज़िंदगी की बहार देखते हैं गुल के पहलू में ख़ार देखते हैं जल्वा-गर हैं वो ख़शमगीं हो कर नूर के साथ नार देखते हैं जिस तरफ़ भी निगाह उठती है जल्वा-ए-रू-ए-यार देखते हैं प्यार होता है जिस से ऐ प्यारे उस को ही बार बार देखते हैं हम समझते हैं उस को अपना ही जिस की आँखों में प्यार देखते हैं दुख़्त-ए-रज़ की हैं शोख़ियाँ क़िबला जुब्बा-ए-दाग़-दार देखते हैं क्या यही दिल है जिस को पहलू में हम 'अमीं' बे-क़रार देखते हैं