ज़िंदगी में तिरी उक़ाब है क्या दिल में तेरे भी इज़्तिराब है क्या अश्क आँखों में लब पे ख़ामोशी इश्क़ तुझ को भी बे-हिसाब है क्या वो जो जलता है वो ही सूरज है जो चमकता है माहताब है क्या लोग क्यों इतने दिल दुखाते हैं दिल दुखाना कोई सवाब है क्या तेरे होंटों पे है हँसी इतनी दर्द तुझ को भी बे-हिसाब है क्या वो जो नाकाम हो चुका था कभी वो ही दुनिया में कामयाब है क्या मेरी हर बात पर ये ख़ामोशी ये ख़मोशी तिरी जवाब है क्या बारहा लोग उस को पढ़ते हैं उस का चेहरा कोई किताब है क्या तू जो सोता नहीं है ऐ 'रिज़वान' तेरी आँखों में कोई ख़्वाब है क्या