ज़िंदगी ये सख़्त-जानी और है हाए अपनी ना-तवानी और है क्या मुझे उन की दुआएँ लग गईं या'नी कुछ दिन सरगिरानी और है बारहा रोते रहे हैं ज़ार ज़ार पर ये अब की नौहा-ख़्वानी और है हम ने झेली हैं बहुत सी आफ़तें ये बला-ए-आसमानी और है हैं तुम्हारी ज़िंदगी में रौनक़ें पर हमारी ज़िंदगानी और है वक़्त-ए-रुख़्सत थरथराते लब तिरे मुझ से कहते हैं कहानी और है