ज़ीस्त में ग़म का असर कल की तरह आज भी है इस सफ़ीने में भँवर कल की तरह आज भी है हादसे कर न सके मेरी मोहब्बत को फ़ना दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर कल की तरह आज भी है ग़ैर मुमकिन है सँवर जाए गुलिस्ताँ का निज़ाम बाग़बाँ तंग-नज़र कल की तरह आज भी है दैर-ओ-का'बा की फ़ज़ाओं का नहीं मुझ पे असर तेरी दहलीज़ पे सर कल की तरह आज भी है है वही रंग वही हुस्न वही रानाई तेरा कूचा तिरा दर कल की तरह आज भी है हम ने माना कि बहार आई है मयख़ाने में प्यास रिंदों में मगर कल की तरह आज भी है ये अलग बात है होंटों पे हँसी है 'नय्यर' ज़ख़्म सीने में मगर कल की तरह आज भी है