वा'दे दिए थे उस ने निशानी तो थी नहीं यादों पे हम ने फ़िल्म बनानी तो थी नहीं बस देखना था तेरी हथेली पे एक नाम हम ने तुम्हारी शाम चुरानी तो थी नहीं किरदार की अज़िय्यतें कुछ पूछिए न बस बे-रब्त थीं लकीरें कहानी तो थी नहीं हर एक शख़्स खोजने में था लगा हुआ मैं ने किसी को बात बतानी तो थी नहीं कुछ वक़्त बस गुज़ारना था घर के सहन में दीवार जो गिराई उठानी तो थी नहीं इस सिलसिले को रोकना भी अब यहीं पे था ये बात हम ने आगे चलानी तो थी नहीं मजनूँ के नाम एक इलाक़ा किया रक़म सहरा की ख़ाक शहर में लानी तो थी नहीं शोहरत किसी के ग़म की हुई है अता 'ज़ुबैर' इज़्ज़त ये शाइ'री से कमानी तो थी नहीं