ज़ुहूर-ए-यूसुफ़-ए-जाँ की निशानियाँ हैं कई ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे उड़ती कहानियाँ हैं कई अभी शगुफ़्ता है सीने में आरज़ू का चमन तिरे सितम से अभी ख़ुश-गुमानियाँ हैं कई इस एक जोर से दिल किस तरह हो आज़ुर्दा अभी तो याद तिरी मेहरबानियाँ हैं कई झुकी नज़र में है नादीदा जन्नतों की नवेद जवाँ लबों पे मचलती कहानियाँ हैं कई हुई शबाब में बस एक ही ख़ता हम से समझ लिया था कि ऐसी जवानियाँ हैं कई गुज़र तो ले ये शब-ए-हिज्र एक बार ऐ दिल तिरे नसीब में रातें सुहानियाँ हैं कई