किसी मुशायरे में मजाज़ अपनी ग़ज़ल पढ़ रहे थे। महफ़िल पूरे रंग पर थी और सुननेवाले ख़ामोशी के साथ कलाम सुन रहे थे, कि इतने में किसी ख़ातून की गोद में उनका शेरख़्वार बच्चा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। मजाज़ ने अपनी ग़ज़ल का शे’र अधूरा छोड़ते हुए हैरान हो कर पूछा, “भई! ये नक़्श फ़र्यादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का।”