आफ़ात मच्छरों की

आया है ले के मौसम सौग़ात मच्छरों की
हर सम्त हो रही है बरसात मच्छरों की

कम-ज़ात मच्छरों की बद-ज़ात मच्छरों की
हम ख़ूब जानते हैं औक़ात मच्छरों की

देते हैं हस्ब-ए-आदत बीमारियों को दावत
कर कर के हम ज़ियाफ़त दिन-रात मच्छरों की

है माजरा ये कैसा क्या क़हर है ख़ुदा का
नाज़िल जो हो रही हैं आफ़ात मच्छरों की

आती हैं हँसती गाती जाती हैं गुनगुनाती
अफ़्वाज मच्छरों की बारात मच्छरों की

बिच्छू से भी ज़ियादा ज़हरीले हो चुके हैं
कुछ बढ़ चुकी है इतनी औक़ात मच्छरों की

फैला के क्यों ग़लाज़त आलूदगी निजासत
करते हैं परवरिश क्यों हालात मच्छरों की

हर चीज़ से अनोखी हर शय से हैं निराली
अतवार मच्छरों के हरकात मच्छरों की

चलती हैं साएँ साएँ जब तेज़-तर हवाएँ
बनती हैं बिन बनाए कुछ बात मच्छरों की

इस दौर में है क़िल्लत हर चीज़ की मगर है
इफ़रात मच्छरों की बोहतात मच्छरों की

अपना लहू पिला कर हम लोग 'राही' अक्सर
करते रहे तवाज़ो' दिन-रात मच्छरों की


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