दम-ब-दम अपनी ही नज़रों से उतरते हुए लोग हैं अजब लोग ये हर साँस में मरते हुए लोग याद-ए-माज़ी के ख़राबों में ठिठुरते हुए लोग ख़िश्त-ए-पारीना की मानिंद बिखरते हुए लोग लज़्ज़त-ए-ज़ीस्त से ख़ाइफ़ ग़म-ए-हस्ती से ख़फ़ा अपने जज़्बात से हर लहज़ा मुकरते हुए लोग जल्वा-ए-रू-ए-हक़ीक़त से निगाहें फेरे अपने औहाम से सरगोशियाँ करते हुए लोग इन की आँखों में धुँदलकों के सिवा कुछ भी नहीं ख़्वाब क्या देखेंगे ता'बीर से डरते हुए लोग