आग जब पहले-पहल सरसब्ज़ वादी में उतरी तो लोगों ने कहा आग रौशन है और उन में से जो ज़ियादा सोचते थे बोले आग ख़ुदा का मज़हर है ख़ुदा की तरह ख़ूबसूरत रौशन और ताक़त-वर चंद लोगों ने दबी ज़बान से कहा भी आग किस की दोस्त हुई है लेकिन उन की ज़बानें काट दी गईं और उन के सर क़लम कर दिए गए और जहाँ आग उतरी थी वहाँ एक मा'बद ता'मीर कर दिया गया और आग फैलती रही चंद लोगों ने फिर दबी ज़बान से कहा आग भला किस की दोस्त हुई है और उन की ज़बानें भी काट दी गईं और उन के सर भी क़लम कर दिए गए और आग फैलती रही ज़बानें कटती रहीं और सर क़लम होते रहे यहाँ तक कि सारी वादी एक मा'बद बन गई और मा'बद खंडर बन गया और वो जो ज़ियादा सोचते थे वो सोचते सोचते आग का रिज़्क़ बन गए आग भला किस की दोस्त हुई है