हर तमन्ना मेरी उन का मुद्दआ' है आज-कल ज़िंदगी ही ज़िंदगी का आसरा है आज-कल ज़ौक़-ए-उल्फ़त बे-नियाज़-ए-मा-सिवा है आज-कल मुझ को उन से उन को मुझ से वास्ता है आज-कल इंतिहा-ए-क़ुर्ब-ओ-रब्त-ए-बाहमी के बावजूद सीने में धड़कन सी दिल में दर्द सा है आज-कल यूँ तो ऐसा इज़्तिराब ऐसी ख़लिश पहले भी थी लेकिन इस आलम में इक तुर्फ़ा मज़ा है आज-कल हो रहा है चश्म-ए-ख़ुद-बीं को भी इर्फान-ए-जुनूँ ख़ुश-निगाही में इज़ाफ़ा हो रहा है आज-कल अपनी अपनी हद में चश्म-ओ-दिल की मह्विय्यत न पूछ ज़ाहिर-ओ-बातिन का जल्वा आइना है आज-कल इम्तियाज़-ए-तालिब-ओ-मतलूब तक बाक़ी नहीं गर्दिश-ए-दौराँ से ये लम्हा जुदा है आज-कल काश उम्र-ए-रफ़्ता की तारीख़ भी पलटे वरक़ दिल-नवाज़ी शेवा-ए-अहल-ए-जफ़ा है आज-कल दिल तो दो हैं लेकिन इक ज़ंजीर में जकड़े हुए हुस्न भी मिनजुमला-ए-अहल-ए-वफ़ा है आज-कल अक़्ल-ओ-दानिश है अलग इदराक की हद से जुदा शौक़ की दुनिया का आलम दूसरा है आज-कल हुस्न-ओ-उलफ़त दोनों इक मंज़िल में आ कर खो गए क्या ख़बर है कौन किस का रहनुमा है आज-कल इस का ऐ 'नख़शब' त'अल्लुक़ है लतीफ़ एहसास से हर किसी को क्या ख़बर कैसी फ़ज़ा है आज-कल