मोहब्बत ब-नौ-ए-दिगर चाहता हूँ तुझी को तिरा नामा-बर चाहता हूँ दुआ बे-नियाज़-ए-असर चाहता हूँ ग़म-ए-दिल ग़म-ए-मो'तबर चाहता हूँ तमन्ना-ए-जल्वा खिलाफ-ए-ख़िरद है मगर मैं ब-ज़ो'म-ए-नज़र चाहता हूँ ये माना रग-ए-जाँ से नज़दीक हो तुम मैं इस से भी नज़दीक-तर चाहता हूँ वफ़ा और तुम इक फ़रेब-ए-वफ़ा है समझता हूँ मैं भी मगर चाहता हूँ जहाँ सिर्फ़ तेरे ही नक़्श-ए-क़दम हों मोहब्बत की वो रहगुज़र चाहता हूँ वफ़ाएँ तुम्हारी हों या हों जफ़ाएँ कोई शय भी हो मो'तबर चाहता हूँ मोहब्बत बहर-गाम दुश्वार-तर है वो खिंचते हैं मैं जिस क़दर चाहता हूँ उन्हें भी नहीं चाहता मुज़्तरिब मैं और आहों को भी बा-असर चाहता हूँ मिरे दिल की नादानियाँ कोई देखे उन्हें भी ब-क़द्र-ए-नज़र चाहता हूँ वो आग़ाज़-ए-उल्फ़त वो पुर-कैफ़ लम्हे वही फ़स्ल-ए-दीवाना-गर चाहता हूँ तुम्हारी ख़बर क्या भला मुझ को होगी मैं अपनी ही तुम से ख़बर चाहता हूँ दिल-ए-बद-गुमाँ हर तरह मुतमइन है मगर ए'तिबार-ए-नज़र चाहता हूँ जहाँ मा-सिवा नक़्श-ए-बातिल है 'नख़शब' उसी रहगुज़र से गुज़र चाहता हूँ