ताब-ए-नज़्ज़ारा कहाँ किस को भला आज के दिन ज़र्रा-ज़र्रा हुआ ख़ुर्शीद-नुमा आज के दिन मस्त-ओ-सरशार चमन लाला-ओ-नर्गिस शादाब झूम कर छाई है गुलशन पे घटा आज के दिन जाम पर जाम छलकने लगे मयख़ाने में साथ मय पीते हैं अरबाब-ए-वफ़ा आज के दिन मेहंदी हाथों में हिना पैरहन-ए-रंगीं में मह-वशों की कोई देखे तो अदा आज के दिन दोस्तो सिद्क़-ओ-अहिंसा के उसूलों पे चलो छोड़ दो रस्म-ओ-रह-ए-जौर-ओ-जफ़ा आज के दिन मुतरिब-ए-वक़्त से कह दो कोई नग़्मा छेड़े गूँज उठे साज़ पे शाइ'र की नवा आज के दिन ज़ेहन-ओ-बातिन को करो साफ़ ज़रा हम-वतनो सीख लो रस्म-ए-वफ़ा सिद्क़-ओ-सफ़ा आज के दिन कौन सी बज़्म है जिस में नहीं सामान-ए-तरब है बशर कौन जो शादान न हो आज के दिन मिट गई तीरा-शबी मेहर-ए-मुनव्वर से 'बसंत' नूर ही नूर गुलिस्ताँ में हुआ आज के दिन