दुनिया को इंक़लाब की याद आ रही है आज तारीख़ अपने आप को दोहरा रही है आज वो सर उठाए मौज-ए-फ़ना आ रही है आज मौज-ए-हयात मौत से टकरा रही है आज कानों में ज़लज़लों की धमक आ रही है आज हर चीज़ काएनात की थर्रा रही है आज झपका रही है देर से आँखें हवा-ए-दहर कौन-ओ-मकाँ को नींद सी कुछ आ रही है आज हर लफ़्ज़ के मआ'नी-ओ-मतलब बदल चुके हर बात और बात हुई जा रही है आज यकसर जहान-ए-हुस्न भी बदला हुआ सा है दुनिया-ए-इश्क और नज़र आ रही है आज हर हर शिकस्त-ए-साज़ में है लहन-ए-सरमदी या ज़िंदगी के गीत अजल गा रही है आज ये दामन-ए-अजल है कि तहरीक-ए-ग़ैब है क्या शय हवा-ए-दहर को सनका रही है आज अबना-ए-दहर लेते हैं यूँ साँस गर्म-ओ-तेज़ जीने में जैसे देर हुई जा रही है आज अफ़्लाक की जबीं भी शिकन-दर-शिकन सी है त्योरी ज़मीन की भी चढ़ी जा रही है आज फिर छेड़ती है मौत हयात-ए-फ़सुर्दा को फिर आतिश-ए-ख़मोश को उकसा रही है आज बरहम सा कुछ मिज़ाज-ए-अनासिर है इन दिनों और कुछ तबीअ'त अपनी भी घबरा रही है आज इक मौज-ए-दूद सीने में लर्ज़ां है इस तरह नागिन सी जैसे शीशे में लहरा रही है आज बीते जुगों की छाँव है इमरोज़ पर 'फ़िराक़' हर चीज़ इक फ़साना हुई जा रही है आज