कब तक तुम अपनी आग में जलते रहोगे कब तक सूना चराग़ जलता रहे कभी तुम्हारे आँगन में भी कोई उतरे लहू के चराग़ जलाए हुए तुम्हारे सायों से भी प्यार करे तुम पूरे चाँद के साथ गाओ घुप अंधेरे में भी नाचो ये तमन्ना भी पूरी हो और मैं ये मंज़र राख के ढेर से और कभी पाताल से देखूँ