तुम्हें याद है मोहब्बत की आख़िरी रूसूमात के दौरान तन्हाई के एक जंगल में मैं ने तुम्हें मोहब्बत का आख़िरी तोहफ़ा भी दिया था मेरे कुंवारे-पन की ख़ुश्बू तुम्हारे पसीने में गुंध गई थी वो शाम पहले बोसे से शुरूअ हुई थी और अंधेरे की नज़्र हो गई थी लेकिन मोहब्बत बे-साख़्तगी के इस वार पर ख़ुश थी मोहब्बत अपनी जीत का जश्न मना रही थी क्या ये याद तुम्हारे लिए एक तोहफ़ा नहीं है जो उस दिन तुम्हें मिला था...