चल ऐ नसीम-ए-सहरा रूह-ओ-रवान-ए-सहरा मेरा पयाम ले जा सू-ए-बुतान-ए-सहरा सहराई महवशों की ख़िदमत में जा के कहना भूले नहीं तुम्हें हम ऐ दुख़्तरान-ए-सहरा गर बस चले तो आएँ और दर्द-ए-दिल सुनाएँ तुम को गले लगाएँ हम फिर मियान-ए-सहरा तुम नज्द में परेशाँ शहरों में हम हैं हैराँ अल्लाह की अमाँ हो तुम पर बुतान-ए-सहरा तुम इस तरह ग़मों से बेहाल हो रही हो हम इस तरफ़ हैं मुज़्तर दामन-कुशान-ए-सहरा हम पास आएँ क्यूँ कर तुम को बुलाएँ क्यूँ कर ये दुख मिटाएँ क्यूँ कर वामाँदगान-ए-सहरा बेताब हैं अलम से बे-ख़्वाब रंज-ओ-ग़म से क्या पूछती हो हम से ऐ दिलबरान-ए-सहरा तुम याद कर रही हो बेदाद कर रही हो बरबाद कर रही हो ऐ गुल-रुख़ान-ए-सहरा ये क्या कहा कि तुम हो रंगीनियों के ख़ूगर ग़मगीं हैं तुम से बढ़ कर ऐ ग़म-कुशान-ए-सहरा ये रात ये घटाएँ ये शोर ये हवाएँ बिछड़े हुए मिलेंगे क्यूँकर मियान-ए-सहरा शहरों की ज़िंदगी से हम तंग आ चुके हैं सहरा में फिर बुला लो ऐ सकिनान-ए-सहरा याद-ए-सुमूम हो या सरसर के तुंद तूफ़ाँ डरते नहीं किसी से दिल-दादगान-ए-सहरा आबादियों में हासिल आज़ादियाँ नहीं हैं आ जाओ तुम ही उड़ कर ओ ताइरान-ए-सहरा सहरा की वुसअतों में हम को न भूल जाना ओ दुख़्तरान-ए-सहरा ओ आहुवान-ए-सहरा ऐ अब्र चुप न रहना मेरा फ़साना कहना मिल जाए गर कहीं वो सर्व-ए-रवान-ए-सहरा दश्ती की धुन में साक़ी इक नग़्मा-ए-इराक़ी हाँ फिर सुना ब-याद-ए-गुल-चेहरगान-ए-सहरा आँखों में बस रहा है नक़्श-ए-बुतान-ए-सहरा ओ दास्ताँ-सरा छेड़ इक दास्तान-ए-सहरा मस्ताना जा रहा है फिर कारवान-ए-सहरा हाँ झूम कर हुदी-ख़्वाँ इक दास्तान-ए-सहरा देहात की फ़ज़ाएँ आँखों में फिर रही हैं दिल में समा रही है याद-ए-बुतान-ए-सहरा नज़रों पे छा रहा है वो चाँदनी का मंज़र सहरा में खेलती थीं जब हूरयान-ए-सहरा वो चाँदनी का मौसम वो बे-ख़ुदी का आलम वो नूर का समुंदर रेग-ए-रवान-ए-सहरा जल्वे मह-ए-जवाँ के वो रंग-ए-कारवाँ के वो नग़्मे सारबाँ के रक़्साँ मियान-ए-सहरा क्यूँकर न याद आएँ वो सीम-गूँ फ़ज़ाएँ वो आसमान-ए-सहरा माह-ए-रवान-ए-सहरा वो कमसिनों के गाने वो खेल वो तराने बे-फ़िक्री के फ़साने विर्द-ए-ज़बान-ए-सहरा खेतों में घूमते थे हर गुल को चूमते थे मस्ती में झूमते थे जब मय-कशान-ए-सहरा वो गाँव वो फ़ज़ाएँ वो फ़स्ल वो हवाएँ वो खेत वो घटाएँ वो आसमान-ए-सहरा फिर याद आ रही हैं फिर दिल दुखा रही हैं मजनूँ बना रही हैं लैला-वशान-ए-सहरा रातों को छुप के आना और शाने को हिलाना है याद वो जगाना हम को मियान-ए-सहरा वो उन की शोख़ आँखें वो उन की सादा नज़रें बे-ख़ुद बना रही हैं दोशीज़गान-ए-सहरा वो इश्क़-पेशा हूँ मैं जिस के जवान नग़्मे गाता है चाँदनी में हर नौजवान-ए-सहरा इक बदवियत का आशिक़ सहराइयत से बे-ख़ुद 'अख़्तर' भी अपनी धुन में है इक जवान-ए-सहरा