छुट्टियाँ हैं मैं हूँ मीठा आम है और अब मेरा भला क्या काम है मैंगो खाना और पीना मिल्क-शेक शग़्ल अब अपना ये सुब्ह-ओ-शाम है गर्मियाँ हैं गर्मियाँ हैं गर्मियाँ आम है और आम है और आम है नाश्ता खाना डिनर या लंच हो आम के मौसम में नज़्र-ए-आम है मैं नहीं छोड़ूँगा अब लंगड़े की टाँग चूस लूँगा चौसा ऐसा आम है आम कहता है जिसे सारा जहाँ ग़ालिबन जन्नत के फल का नाम है इस की क़ुव्वत का भला क्या पूछना फ़ौक़ सदहा पिस्ता-ओ-बादाम है शौक़ जिस को आम खाने का नहीं ज़ौक़ में वो हम-सर-ए-इनआ'म है सब फलों का जब तक़ाबुल हो 'असर' आम ही बस क़ाबिल-ए-ईनाम है