आस By Nazm << चलो हम मान लेते हैं शबनमी आँसू >> बीत चुका है वो पल जिस पल उस को मेरे घर आना था बीत चुके हैं ऐसे पल भी जिन से मेरा साथ नहीं था शाम हुई है आस को अब तक लाज़िम था ये टूट ही जाती लेकिन मैं तो आती जाती हर रिक्शा को देख रही हूँ Share on: