गए ज़माने के रास्ते पर पहाड़ सूरज ज़मीन दरिया नुक़ूश-ए-पा नाम-ए-ज़ात चेहरा मैं अपने चेहरे से मुन्हरिफ़ हूँ गए ज़माने के रास्ते पर सज़ा की रुत के तवील दिन का ख़तीर विर्सा मिरा बदन है मिरा लहू है मैं अपने विर्से से दस्त-कश हूँ ये आश्ना सुब्ह का सितारा कि जिस की आगाहियों का नासूर मेरे सीने में जल रहा है मैं उस सितारे की सम्त रू-दर-क़ज़ा खड़ा हूँ मैं अपने बातिन की ओट में हूँ ये ख़िश्त साअ'त कि जिस की बालीं से जिस्म आधा निकल के मुझ को बुला रहा है उसे ये कहना लहू का हथियार कुंद निकला मुराजअ'त की दुआ न माँगे उसे ये कहना कि तेरा बेटा नजात की आरज़ू में उस मंज़िल-ए-दुआ से गुज़र गया है जहाँ तिरे अश्क बे-जज़ा थे जहाँ तिरी क़ब्र बे-निशाँ है उसे ये कहना सज़ा की रुत के तवील दिन में मुराजअ'त की दुआ न माँगे