चुप खड़े दरख़्त से मेरे शाने छूते हुए ख़ुश्क पत्ते गिरते हैं बे-नूर धूप और बे-रंग मौसम रुक रुक कर चलती हवा हर शय उदास है ज़मीन आसमान मंज़र सब बाएँ जानिब कोलतार की वो सड़क है जो सब्ज़-ओ-सियाह दरख़्तों की क़तार के दरमियान दूर तक बल खाती चली गई है दाएँ जानिब नवाब की पुरानी हवेली जिस में अब मार्किट है सामने फेंस के उस पार इस्कूल की इमारत जिस के गेट पर मालती की बेल के ज़ेर-ए-साया एक गीत है गीत जो मिलने और बिछड़ने रोने और गाने जीने और ग़म उठाने के बारे में है गीत जो फ़क़त बिछड़ने के लिए मिलने फ़क़त रोने के लिए गाने और फ़क़त ग़म उठाने के लिए जीने के बारे में है गीत जो ज़िंदगी मसर्रतों का कैसा बे-रहम छलावा है ताहम गिला कि ये इतनी मुख़्तसर है उदास दोपहर सूने पार्क की बद-रंग बेंच पर कब से बैठा हूँ फ़ज़ा में एक गीत की बाज़गश्त सुनता हुआ शाद नाशाद