कोई बतलाए मुझे मेरे इन जागते ख़्वाबों का मुक़द्दर क्या है? मैं कि हर शय की बक़ा जानता हूँ उड़ते लम्हों का पता जानता हूँ सर्द और ज़र्द सितारों की तिगापू क्या है रंग क्या चीज़ है ख़ुशबू क्या है सुब्ह का सेहर है क्या, रात का जादू क्या है और क्या चीज़ है आवाज़-ए-सबा जानता हूँ रेत और नक़्श-ए-क़दम मौज का रम आँख और गोश-ए-लब ज़ुल्फ़ का ख़म शाम और सुब्ह का ग़म सब की क़िस्मत है फ़ना जानता हूँ फिर भी ये ख़्वाब मिरे साथ लगे रहते हैं जागते ख़्वाब कि जिन की कोई ताबीर नहीं कोई तफ़्सीर नहीं सूरत-ए-ज़ख़्म हरे रहते हैं मेरे हाथों से परे रहते हैं आगही जहल से बद-तर ठहरी जागते ख़्वाब की ताबीर मुक़द्दर ठहरी ज़िंदगी मेरे लिए गुम्बद-ए-बे-दर ठहरी मैं कि आवाज़-ए-सबा जानता हूँ उड़ते लम्हों का पता जानता हूँ और हर शय की बक़ा जानता हूँ