किसी की याद दिल में है कि जिस से जी निढाल है कहूँ अगर तो क्या कहूँ अजब तरह का हाल है न वो ज़मीं न वो फ़लक न अब वो काएनात है वो ज़िंदगी ही अब नहीं न दिन है वो न रात है वो आरज़ू है कौन सी जो आज पा-ब-गिल नहीं है नाम दिल का दिल मगर जो सच कहूँ तो दिल नहीं घटा उठी तो है मगर पपीहा आज गाय क्या तड़प मिरी मिटाए क्या लगी मिरी बुझाए क्या वो प्रेम से भरे बचन कि जिन से कान-आश्ना वो मस्त आँख मद-भरी कि जिस से जान आश्ना वो बात बात पर हँसी वो छेड़ प्यार प्यार में क़रार इक तड़प में वो तड़प वो इक क़रार में कभी उधर से ताकना कभी उधर से देखना वो मेरे दिल के शौक़ को मिरी नज़र से देखना ग़रज़ वो दिन कि जब मिरे चमन में इक बहार थी ग़रज़ वो दिन कि जब ख़ुशी मिरे लिए सिंगार थी ग़रज़ वो दिन कि नग़्मा-ज़न मसर्रतों का साज़ था ग़रज़ वो दिन कि हुस्न जब मिरा नज़र-नवाज़ था ग़रज़ वो दिन कि जब से दिल निशान ग़म का दूर था ग़रज़ वो दिन कि आँख में भरा हुआ सुरूर था ग़रज़ वो दिन कि मैं भी जब किसी के दिल का नाज़ थी ग़रज़ वो दिन नियाज़ के कि जब मैं बे-नियाज़ थी ग़रज़ वो दिन ख़याल था कि अब न जाएँगे कभी चले गए कुछ इस तरह कि फिर न आएँगे कभी ग़ज़ब ये है शबाब में मिरा सुहाग लुट गया सफ़र में था जो हम-सफ़र उसी का साथ छुट गया ये सच है मुझ ग़रीब का कोई रफ़ीक़ अब नहीं ये सच है ग़म-नसीब का कोई शफ़ीक़ अब नहीं फ़ुग़ाँ में अब वो जोश है कि जिस की इंतिहा नहीं जिगर में अब वो दर्द है कि जिस की कुछ दवा नहीं ख़याल है ख़िज़ाँ में भी मुझे उसी बहार का ग़ज़ब है छोड़ता नहीं फ़रेब इंतिज़ार का अजल की एक शक्ल है ये दर्द इस बला का है दवा करूँ तो क्या करूँ कि वक़्त अब दुआ का है मिरी तरह न ज़िंदगी किसी की यूँ अजीब हो नसीब मौत हो अगर तो ज़िंदगी नसीब हो