अपनी ख़ुशियों के आरज़ी जज़्बात ग़म में तहलील कर रही हूँ मैं कोशिशें हैं कि ग़म सहे जाऊँ ख़ुद को तब्दील कर रही हूँ मैं ज़िंदगी ढाल कर मसाइब में अपनी तकमील कर रही हूँ में तेरी रहमत का आसरा ले कर अपनी तज़लील कर रही हूँ मैं कह रही हूँ तिरे सितम को करम ख़ूब तावील कर रही हूँ मैं मौत की वादियों में जाना है कितनी ताजील कर रही हूँ मैं कल इरादों में जान डालूँगी आज तश्कील कर रही हूँ मैं ज़िंदगी की हक़ीक़तें 'नजमा' सिर्फ़ तख़्ईल कर रही हूँ मैं