जब हम दरख़्त बनना चाहते हैं और बन जाते हैं लेकिन हम किसी को साया नहीं दे पाते कोई परिंदा हमारी शाख़ों पर गीत नहीं गाता कोई गिलहरी हमारे तने में अपना घर नहीं बनाती हमारी कोंपलों पर कभी ओस नहीं चमकती और हज़ारों साल तक हमें दीमक नहीं लगती जब हम रास्ता बन जाना चाहते हैं और बन जाते हैं एक पुल और सारी ज़िंदगी एक ही जगह गुज़ार देते हैं और सब हमें पार कर के ज़िंदगी भर के लिए बिछड़ते रहते हैं किसी ख़ाना-जंगी में हमें आग नहीं लगती और हमारे टुकड़े दूर दूर तक एक साथ नहीं बहते जब हम समुंदर बनना चाहते हैं और महज़ एक आँसू बन के किसी रुमाल में जगह बना लेते हैं और कोई उसे सीने से नहीं लगाता अपनी कलाई पर नहीं बाँधता कोई उसे जला के राख किसी ज़ख़्म में नहीं भरता जब हम एक कहानी बनना चाहते हैं और सिर्फ़ एक लफ़्ज़ बन के सर्द होंटों से अदा होते हैं और फिर हमेशा ख़लाओं में भटकते रहते हैं या फ़ज़ा में गूँजते रहते हैं या शायद ये लफ़्ज़ दिल की गहराई से कभी बाहर नहीं निकल पाता और हमेशा के लिए हमारी तरह फ़रामोश कर दिया जाता है