मैं ज़िंदा हूँ कि इक आतिश-दाँ के अंदर जहाँ पर वक़्त जैसी सख़्त-जाँ शय भी पिघल जाए कि जिस के सामने ये आसमाँ एक बैज़ा-ए-मोर और ज़मीं इक नुक़्ता-ए-मौहूम है देखो कि मुझ में वक़्त जैसी सख़्त-जाँ शय और ज़मीन-ओ-आसमाँ हल हैं मैं ज़िंदा हूँ कि आतिश-दाँ है मुझ में