आतिश-बाज़ी के खेल खेलने वालो तुम क्या जानो परिंदा भी ख़्वाब देखता है मोहब्बत के प्यार के और अम्न के ख़्वाब जानते हो जब उस के ख़्वाबों में बारूद की बू बस जाए तो ख़्वाबों की दीवारें भरभरी हो कर बिखरने लगती हैं परिंदा रूठ जाता है सब से अपने आप से भी परिंदा सहमा सहमा गुम-सुम सा फिरता है बे-ख़्वाब आँखों से हर चेहरे को तकता है आतिश-बाज़ी के खेल खेलने वालो तुम क्या जानो परिंदा ख़्वाब न देखे तो ज़मीं से आसमान तक हवा के कासे में काले धुएँ के सिवा कुछ न रहे दिन भी काली रात बन जाए परिंदा मर जाए परिंदा मर जाए