अभी नहीं अभी मौसम नहीं बहारों का अभी तो बर्फ़ भी पिघली नहीं है होंटों की अभी तो रंग भी बदला नहीं है ज़ख़्मों का अभी तो दश्त से लौटे नहीं हैं सौदाई घरों के दीप अभी रौशनी नहीं देंगे अभी चराग़ जलाने की रुत नहीं आई अभी नहीं अभी मौसम नहीं बहारों का अभी तो देखिए आवारगी हवाओं की हमारे शहर से हो कर किधर को जाती है अभी तो देखिए दस्त-ए-ख़िज़ाँ की शब-कारी हमारी आँख के कितने दिए बुझाती है अभी तो देखिए दिल के गुलाब की सुर्ख़ी चमन की धूप में किस किस को रास आती है अभी नहीं अभी मौसम नहीं बहारों का घरों के दीप अभी रौशनी नहीं देंगे