वो तो कोंपल जैसी थी मैं ने उसे क्यूँ तोड़ दिया ये कोंपल की मर्ज़ी थी पर कोंपल की मर्ज़ी ऐसी क्यूँ होती है टूटने में लज़्ज़त कैसी है हाथ और कोंपल में ये गूँगा रिश्ता क्या है पागल हाथ नहीं बोलेगा मैं कोंपल से पूछूँगा कोंपल कोंपल कौन पुकारे कोंपल रानी दूर वो अब पास नहीं आएगी याद नहीं क्या होंटों ने होंटों से कहा था हम तो टूटने आए थे सो टूट चले अब ख़्वाबों की छाँव से बाहर जाने दो वो रफ़्तार की काली आँधी बाहर नाच रही होगी उस आँधी में वापस आना मुश्किल है उस आँधी में छुपा हुआ कोई हाथ हमारा साहिल है वो जो कहीं किसी अन-देखे साहिल से जा टकराई याद मुझे क्यूँ आती है जिस्म में रूह कहाँ शामिल थी पैरों से शबनम क्यूँ लिपटी मैं तो घास पे दौड़ा था