जब ख़ुद शर वहम बन जाए तो ज़िंदगी टूट-फूट जाती है हक़ीक़त का ज़हर हम किसी की चाहत में पीते हैं जब सच्चाई लब पर लाते हैं तो मार दिए जाते हैं जुदाई का ज़ीना बहुत तवील होता है पुल-ए-सिरात की तरह मुक़द्दर का किनारा नहीं होता तक़दीर का शिकवा हारे हुए सिपाही की मा'ज़रत है हम नसीब खो देने का गिला नहीं करते चुपके से ज़िंदगी गँवा देते हैं किसी आहट के बग़ैर किसी को बतलाए बग़ैर अपनी उम्र से बड़ा इश्क़ करते हैं सब कुछ खो कर तुझ में खो जाते हैं दिल पर अँगारों का पैवंद लगा लेते हैं होंटों पर ज़ंजीर लटका लेते हैं जब कोई वा'दा कर के भी न आए तो मुस्कुरा कर सो जाना चाहिए नींद इश्क़ से बेहतर है और इश्क़ वा'दे से जब कोई तन्हा छोड़ कर चला जाए तो दिल महताब के आँगन में उसे नक़्श कर लेना चाहिए जुदाई के सुकूत-ए-गुम-गश्ता में तुम ने मुझे क्यों भुला दिया अभी तो कई फ़साने बाक़ी थे यूँ अचानक मादूम हो जाना किसी को दीवाना बना देता है इतना वक़्त भी नहीं होता कि जुदाई का फ़रमान सुनाया जा सके या मख़दूश को दहलीज़-ए-रंजीदा में दफ़्न कर देना क़ब्ल-ए-रुख़्सत शब-ए-मदहोश के बिस्तर से चाँदनी की सिलवटें मिटा देना कि इस शहर की हवाएँ बहुत दाग़-दार हैं अब के बिछड़ना अलमनाक होगा कई गुज़रे सानेहों की तरह आओ तुम्हें एक नौहा सुना दूँ जो इश्क़ की हिकायत है जो दास्तान बनेगी उन बेवफ़ा दहकती गलियों में