मैं ने जिस को रुख़्सत किया था अपने ही हाथों से छे दिन पहले जी ये चाहा फ़ोन तो कर लूँ उस को उस की इक आवाज़ तो सुन लूँ फ़ोन मिलाया जूँही मैं ने बेटी मेरी बोली हेलो हेलो ही बस मैं कर पाया जाने कैसे दिल भर आया टूट गया फिर ज़ब्त का बंधन आँख में उतरे भादों सावन रोते रोते सिसकी उभरी मीलों दूर से बेटी बोली पापा-जानी! रोते हो तुम अश्कों से मुँह धोते हो तुम फ़ोन का मैं ने नाता तोड़ा फिर यूँ अपने-आप से बोला जी हाँ चंदा रोता हूँ मैं अश्कों से मुँह धोता हूँ मैं रोऊँ न तो और करूँ क्या मेरे बस में है इतना सा