मगर हम ने देखा कि वीरान घाटी का दामन भरा था बहुत सारी चीज़ें हवाओं के पाँव से उलझी हुई थीं दुआओं की ख़ाली और औंधी पड़ी शीशियाँ और टूटी हुई पंजगाना नमाज़ें नवाफ़िल-ओ-सियाम की सख़्त ढालें मसाजिद के रस्तों में तोड़ी गई जूतियों और क़दम-दर-क़दम नेकियों की क़तारें वज़ाइफ़-ओ-दरूद-ओ-मुनाजात के इक रिबन में बंधे ख़ुदावंद-ए-आलम की रस्सी के टुकड़े और ऐसी बहुत सारी चीज़ें ख़ुदा की ख़ुदाई में बिखरी हुई थीं कि जैसे यहाँ रात ठहरे हुए कारवाँ को अब उन की ज़रूरत न थी कि बख़्शिश का ख़ाली कनस्तर बहुत भर गया था मगर नेक नामों की फेंकी हुई बहुत सारी चीज़ों के इस ढेर में कोई हमसाए का दर्द उस पर बहाया गया गर्म आँसू नहीं था कोई भूक को काटने वाला दिलदार चाक़ू नहीं था सख़ावत का ख़ामोश हाथ और शक़ावत पे उठता हुआ कोई बाज़ू नहीं था बहुत सारी चीज़ें थीं लेकिन कहीं भी तराज़ू नहीं था